मध्य प्रदेश राज्य: हाईकोर्ट ने हत्या के आरोप में सजा कम की
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के इस फैसले ने न्यायिक प्रक्रिया में संवेदनशीलता और तथ्यों के गहन विश्लेषण की आवश्यकता को उजागर किया है। यह मामला दर्शाता है कि कैसे पारिवारिक विवाद अचानक हिंसा में बदल सकते हैं और न्यायालय को ऐसे मामलों में मानवीय पहलू को ध्यान में रखना चाहिए। इस निर्णय से न केवल आरोपी को न्याय मिला है, बल्कि पीड़ित परिवार को भी आर्थिक सहारा प्रदान किया गया है।
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केस का संक्षिप्त परिचय
1 मार्च, 2025 को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राजेंद्र @ राजू के खिलाफ हत्या के आरोप में सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को घटाकर 10 साल की सजा में बदल दिया। यह मामला 2015 में हुई एक पारिवारिक विवाद से उत्पन्न हुआ था, जिसमें राजेंद्र ने अपने पड़ोसी बनेसिंह की हत्या कर दी थी।
मामले की पृष्ठभूमि
घटना का विवरण:
22 जनवरी, 2015 को मध्य प्रदेश के धार जिले के गुनावत गाँव में राजेंद्र @ राजू, उसके भाई सुनील @ भुरू और साला गिरधारी ने बनेसिंह के घर के बाहर उस पर कुल्हाड़ी से हमला किया। बनेसिंह को गंभीर चोटें आईं, और अगले दिन उसकी मृत्यु हो गई।FIR और अभियोग:
पुलिस ने IPC की धारा 302 (हत्या), 294 (अश्लील भाषा), 323 (जानबूझकर चोट पहुँचाना), और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज किया।ट्रायल कोर्ट का फैसला:
28 जून, 2019 को ट्रायल कोर्ट ने राजेंद्र को हत्या का दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। सुनील और गिरधारी को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया।
अभियोजन का मामला
गवाहों के बयान:
बनेसिंह की माँ कंकूबाई (PW/2) ने बताया कि विवाद सीवरेज के पानी के बहाव को लेकर हुआ था।
पत्नी संगीता (PW/3) ने हमले का विवरण दिया।
डॉ. देवन उन्नी (PW/16) ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सिर की गंभीर चोटों को मृत्यु का कारण बताया।
सबूत:
हमले में इस्तेमाल की गई कुल्हाड़ी (आर्टिकल-A/1) को सबूत के तौर पर पेश किया गया।
स्पॉट मैप (Ex.P/2) से पता चला कि आरोपी और पीड़ित के घर आस-पास थे।
हाईकोर्ट का निर्णय
तर्कों का मूल्यांकन:
हाईकोर्ट ने माना कि घटना अचानक हुई थी और इसमें “गंभीर और अचानक उकसावा” (Exception 1 to Section 300 IPC) लागू होता है।
राजेंद्र और बनेसिंह के बीच सीवरेज के पानी को लेकर पुराना विवाद था, जो हिंसा का तात्कालिक कारण बना।
सजा में संशोधन:
हत्या (धारा 302) का आरोप हटाकर धारा 304 भाग-I (आकस्मिक हत्या) लागू किया गया।
सजा को आजीवन कारावास से घटाकर 10 साल की कैद और 1 लाख रुपये का जुर्माना किया गया। जुर्माने की राशि पीड़ित की पत्नी संगीता को दी जाएगी।
निर्णय के प्रभाव
राजेंद्र के लिए राहत:
सजा में कमी से उसके जेल में बिताए समय में कटौती होगी।
जुर्माने की राशि से पीड़ित परिवार को आर्थिक सहायता मिलेगी।
कानूनी महत्व:
“गंभीर और अचानक उकसावे” की व्याख्या स्पष्ट हुई, जो भविष्य के मामलों में मददगार होगी।
न्यायालय ने आपराधिक मामलों में परिस्थितिजन्य साक्ष्य के महत्व को रेखांकित किया।
निष्कर्ष
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के इस फैसले ने न्यायिक प्रक्रिया में संवेदनशीलता और तथ्यों के गहन विश्लेषण की आवश्यकता को उजागर किया है। यह मामला दर्शाता है कि कैसे पारिवारिक विवाद अचानक हिंसा में बदल सकते हैं और न्यायालय को ऐसे मामलों में मानवीय पहलू को ध्यान में रखना चाहिए। इस निर्णय से न केवल आरोपी को न्याय मिला है, बल्कि पीड़ित परिवार को भी आर्थिक सहारा प्रदान किया गया है।
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SHRUTI MISHRA
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