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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रोफेसर पद पर एसटी आरक्षण को रद्द किया, कहा- “मात्रात्मक डेटा के बिना आरक्षण असंवैधानिक”
श्रुति मिश्रा कानूनी संवाददाता

ग्वालियर: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने स्वायत्त चिकित्सा महाविद्यालयों में प्रोफेसर पदों पर अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षण को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका पर फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार के नोटिफिकेशन को आंशिक रूप से रद्द कर दिया। न्यायमूर्ति मिलिंद रमेश फड़के की खंडपीठ ने कहा कि आरक्षण लागू करने के लिए “पिछड़ेपन, अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और प्रशासनिक दक्षता” का मात्रात्मक डेटा जुटाना अनिवार्य है, जो इस मामले में नहीं किया गया।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता डॉ. अवधेश शुक्ला ने 6 अप्रैल 2023 के नोटिफिकेशन को चुनौती दी थी, जिसमें न्यूरोसर्जरी विभाग में प्रोफेसर के दो पदों में से एक को एसटी के लिए आरक्षित किया गया था। उनका तर्क था कि:

  1. मध्य प्रदेश सिविल सेवा (पदोन्नति) नियम, 2002 को 2016 में ही असंवैधानिक घोषित किया जा चुका है।

  2. राज्य ने रोस्टर प्रणाली का गलत तरीके से उपयोग किया, जबकि पहले दो पद अनारक्षित होने चाहिए थे।

  3. आरक्षण लागू करने के लिए अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का कोई मात्रात्मक डेटा प्रस्तुत नहीं किया गया।

अदालत के समक्ष प्रमुख तर्क

याचिकाकर्ता की ओर से:

  • वरिष्ठ वकील हरिश कुमार दीक्षित ने कहा कि राज्य ने सीधी भर्ती के लिए बनाए गए 100 पॉइंट रोस्टर को पदोन्नति पर लागू किया, जो इंद्र साहनी बनाम भारत संघ (1993) के फैसले के विपरीत है।

  • एम. नागराज बनाम भारत संघ (2006) और जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता (2022) के हवाले से कहा गया कि आरक्षण के लिए “कैडर” स्तर पर डेटा जुटाना जरूरी है, न कि समग्र सेवा को आधार बनाना।

  • राज्य ने 2022 के जीएडी सर्कुलर को गलत ढंग से लागू किया, जो सीधी भर्ती के लिए था, पदोन्नति के लिए नहीं।

राज्य की ओर से:

  • अतिरिक्त एडवोकेट जनरल विवेक खेड़कर ने दावा किया कि 11 अप्रैल 2022 के संशोधित रोस्टर का पालन किया गया, जो संवैधानिक है।

  • उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता ने चयन प्रक्रिया में भाग लेने के बाद हारने पर याचिका दायर की, जो डी. सरोजाकुमारी बनाम आर. हेलेन थिलाकोम (2017) के फैसले के अनुसार गैर-मान्य है।

अदालत का निर्णय

खंडपीठ ने याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्नलिखित निष्कर्ष दिए:

  1. रोस्टर प्रणाली का गलत उपयोग: अदालत ने कहा कि पदोन्नति में आरक्षण के लिए सीधी भर्ती का रोस्टर लागू करना इंद्र साहनी के फैसले का उल्लंघन है।

  2. मात्रात्मक डेटा का अभाव: एम. नागराज और जरनैल सिंह के अनुसार, राज्य को एसटी वर्ग के “अपर्याप्त प्रतिनिधित्व” का कैडर-वार डेटा प्रस्तुत करना था, जो नहीं किया गया।

  3. नोटिफिकेशन का आंशिक रद्दीकरण: एसटी के लिए आरक्षित दूसरे पद को रद्द कर दिया गया। राज्य को निर्देश दिया गया कि शेष पद को योग्यता के आधार पर भरें या नए सिरे से मात्रात्मक डेटा जुटाकर आरक्षण लागू करें।

प्रमुख कानूनी संदर्भ

  • संविधान का अनुच्छेद 16(4ए): केवल अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए पदोन्नति में आरक्षण की अनुमति देता है, बशर्ते अपर्याप्त प्रतिनिधित्व साबित हो।

  • मध्य प्रदेश स्वायत्त चिकित्सा नियम, 2018: नियम 9 के तहत राज्य सरकार द्वारा निर्धारित आरक्षण लागू होता है, लेकिन 2002 के नियम अमान्य होने के कारण कोई वैध आधार नहीं था।

  • भारत के संविधान का 77वां संशोधन (1995): पदोन्नति में आरक्षण की अनुमति देता है, लेकिन एम. नागराज के मानदंडों का पालन अनिवार्य है।

निष्कर्ष

यह फैसला राज्य सरकारों के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि पदोन्नति में आरक्षण लागू करने से पहले संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है। अदालत ने जोर देकर कहा कि “आरक्षण सामाजिक न्याय का उपकरण है, लेकिन यह मनमाना नहीं हो सकता।” इस मामले में डेटा के अभाव और रोस्टर के दुरुपयोग ने आरक्षण की वैधता को खत्म कर दिया।

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