सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 22(1) के उल्लंघन पर विहान कुमार को दी राहत: गिरफ्तारी प्रक्रिया पर सख्त टिप्पणियाँ पूर्व निर्णयों और कानूनी प्रावधानों के आधार पर गिरफ्तारी को अवैध घोषित किया
नई दिल्ली, 7 फरवरी 2025: सुप्रीम कोर्ट ने विहान कुमार बनाम हरियाणा राज्य के मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए गिरफ्तारी प्रक्रिया में अनुच्छेद 22(1) और अनुच्छेद 21 के उल्लंघन को गंभीर बताया। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति नोंगमेइकापम कोटिश्वर सिंह की पीठ ने पंकज बंसल बनाम भारत संघ (2024), प्रबीर पुरकायस्थ बनाम एनसीटी दिल्ली (2024), और लल्लूभाई जोगभाई पटेल बनाम भारत संघ (1981) जैसे पूर्व निर्णयों का सहारा लेते हुए विहान की गिरफ्तारी को असंवैधानिक ठहराया।
मामले के तथ्य और विवाद
आरोप: 25 मार्च 2023 को गुरुग्राम के डीएलएफ पुलिस थाने में धारा 409, 420, 467, 468, 471 और 120बी आईपीसी के तहत एफआईआर दर्ज।
गिरफ्तारी: 10 जून 2024 को विहान को उनके कार्यालय से गिरफ्तार किया गया। पुलिस ने दावा किया कि गिरफ्तारी के आधार उनकी पत्नी को बताए गए, परंतु विहान को स्वयं सूचित नहीं किया गया।
उल्लंघन: विहान को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं किया गया और अस्पताल में हथकड़ी व जंजीरों से बांधा गया।
पक्षों के तर्क
अपीलकर्ता (विहान कुमार) के तर्क:
अनुच्छेद 22(1) का उल्लंघन: गिरफ्तारी के आधार न तो लिखित में दिए गए और न ही मौखिक रूप से बताए गए।
अनुच्छेद 22(2) का उल्लंघन: 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं किया गया।
अनुच्छेद 21 का उल्लंघन: अस्पताल में हथकड़ी लगाना और बेड से बांधना गरिमामय जीवन के अधिकार के विरुद्ध।
हरियाणा पुलिस के तर्क:
केस डायरी में एंट्री: 10 जून 2024 को शाम 6:10 बजे का रिकॉर्ड दिखाया कि “गिरफ्तारी के आधार बताए गए”।
रिमांड रिपोर्ट: 11 जून 2024 की रिमांड रिपोर्ट में आधार का उल्लेख होने का दावा।
सूचना पत्नी को: धारा 50A सीआरपीसी के तहत विहान की पत्नी को गिरफ्तारी की जानकारी दी गई।
न्यायालय का विश्लेषण और पूर्व निर्णयों पर आधार
अनुच्छेद 22(1) की अनिवार्यता:
पंकज बंसल केस (2024): “गिरफ्तारी के आधार लिखित में देना अनिवार्य नहीं, परंतु संवैधानिक उद्देश्य (मौलिक अधिकारों की सुरक्षा) के लिए यह आवश्यक है।”
प्रबीर पुरकायस्थ केस (2024): “अनुच्छेद 22(1) का उल्लंघन गिरफ्तारी को स्वतः अवैध बनाता है।”
भाषा और समझ का मुद्दा:
लल्लूभाई जोगभाई पटेल केस (1981): “गिरफ्तार व्यक्ति को आधार उसकी समझ की भाषा में बताना अनिवार्य है। केवल रिश्तेदारों को सूचित करना पर्याप्त नहीं।”
धारा 50 सीआरपीसी (BNSS की धारा 47):
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 50(1) में “अपराध की पूर्ण जानकारी” देना अनुच्छेद 22(1) से अलग नहीं, बल्कि उसका विस्तार है।
हथकड़ी लगाने पर रोक:
प्रेम शंकर शुक्ला बनाम दिल्ली प्रशासन (1980): “हथकड़ी केवल अत्यंत जोखिम वाले मामलों में लगाई जा सकती है।”
निर्णय के प्रमुख बिंदु
गिरफ्तारी अवैध: अनुच्छेद 22(1) का पालन न होने के कारण विहान की गिरफ्तारी रद्द।
तत्काल रिहाई: विहान को तुरंत जेल से रिहा करने का आदेश।
हरियाणा सरकार को निर्देश:
पुलिस को अनुच्छेद 22 और हथकड़ी संबंधी दिशा-निर्देश जारी करने को कहा गया।
अस्पताल में कैदियों को बांधने की प्रथा पर रोक लगाने को कहा गया।
फैसले का व्यापक प्रभाव
पुलिस प्रक्रिया में सुधार: गिरफ्तारी के समय लिखित आधार देना और समझ की भाषा का उपयोग अनिवार्य होगा।
नागरिक अधिकारों की सुरक्षा: यह फैसला मौलिक अधिकारों को प्राथमिकता देने वाले न्यायिक दृष्टिकोण को दर्शाता है।
न्यायमूर्ति ओका का अवलोकन:
“अनुच्छेद 22(1) का उल्लंघन केवल प्रक्रियात्मक त्रुटि नहीं, बल्कि संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है। पुलिस को यह सुनिश्चित करना होगा कि गिरफ्तार व्यक्ति को उसके अधिकारों की पूरी जानकारी हो।”
संदर्भ: विहान कुमार बनाम हरियाणा राज्य, 2025 INSC 162।