सुप्रीम कोर्ट ने स्टॉक ब्रोकर के पक्ष में फैसला सुनाया: पति-पत्नी को संयुक्त रूप से जिम्मेदार ठहराया न्यायालय ने बीएसई के नियमों और मौखिक समझौते को आधार बनाते हुए हाई कोर्ट के फैसले को पलटा

नई दिल्ली, 10 फरवरी 2025: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले में स्टॉक ब्रोकर एसी चोकशी शेयर ब्रोकर प्राइवेट लिमिटेड के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि पति-पत्नी (जतिन प्रताप देसाई और अन्य) संयुक्त रूप से पत्नी के ट्रेडिंग खाते में हुए नुकसान के लिए जिम्मेदार हैं। न्यायमूर्ति पामिदिघंटम श्री नरसिम्हा और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) के नियमों और पक्षों के बीच मौखिक समझौते को आधार मानते हुए हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया, जिसने पति की जिम्मेदारी को खारिज कर दिया था।

मामले की पृष्ठभूमि

  • 1999 में, जतिन प्रताप देसाई (पति) और उनकी पत्नी ने एसी चोकशी शेयर ब्रोकर के साथ अलग-अलग ट्रेडिंग खाते खोले।

  • 2001 में, पत्नी के खाते में ₹1.18 करोड़ का डेबिट बैलेंस हो गया। ब्रोकर ने दावा किया कि पति ने मौखिक रूप से संयुक्त जिम्मेदारी स्वीकार की थी और उनके खाते से ₹9.40 लाख की राशि पत्नी के खाते में ट्रांसफर की गई।

  • 2004 में, मध्यस्थता ट्रिब्यूनल ने दोनों को संयुक्त रूप से जिम्मेदार ठहराया, लेकिन 2021 में हाई कोर्ट ने पति की जिम्मेदारी खारिज कर दी।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य तर्क

  1. बीएसई नियम 248(a) का दायरा:

    • कोर्ट ने कहा कि बीएसई के नियम 248(a) के तहत मध्यस्थता का दायरा व्यापक है। पति और पत्नी के बीच मौखिक समझौता और उनका संयुक्त व्यवहार (जैसे एक-दूसरे के खातों का प्रबंधन) इस नियम के अंतर्गत आता है।

    • न्यायालय ने ONGC बनाम डिस्कवरी एंटरप्राइजेज (2022) और P.R. शाह बनाम B.H.H. सिक्योरिटीज (2012) के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि “गैर-हस्ताक्षरकर्ता” भी मध्यस्थता का पक्ष बन सकते हैं, यदि लेनदेन संयुक्त है।

  2. मध्यस्थता ट्रिब्यूनल का निर्णय यथोचित:

    • ट्रिब्यूनल ने गवाही और दस्तावेजों (जैसे बैंक चेकों का क्रम) के आधार पर संयुक्त जिम्मेदारी का फैसला दिया।

    • हाई कोर्ट ने धारा 37 (मध्यस्थता अधिनियम) के दायरे से बाहर जाकर सबूतों का पुनर्मूल्यांकन किया, जो गलत है।

  3. बीएसई नियम 247A का उल्लंघन नहीं:

    • पति के खाते से राशि ट्रांसफर करना नियम 247A के खिलाफ नहीं था, क्योंकि संयुक्त जिम्मेदारी के कारण ब्रोकर को लिएन (अधिकार) प्राप्त था।

मुख्य निष्कर्ष

पक्षसुप्रीम कोर्ट का निर्णय
एसी चोकशी शेयर ब्रोकरअपील स्वीकार
जतिन प्रताप देसाई (पति)संयुक्त रूप से ₹1.18 करोड़ + 9% वार्षिक ब्याज का भुगतान करें
पत्नीजिम्मेदारी बरकरार

न्यायिक टिप्पणियाँ

  • मौखिक समझौतों का महत्व: “पार्टियों का व्यवहार और मौखिक समझौता लिखित दस्तावेजों से कम महत्वपूर्ण नहीं होता। यहाँ, पति ने अपने कार्यों से संयुक्त जिम्मेदारी स्वीकार की थी।” — न्यायमूर्ति नरसिम्हा।

  • मध्यस्थता में न्यायिक हस्तक्षेप की सीमा: “धारा 34/37 के तहत अदालतें सबूतों को फिर से नहीं जाँच सकतीं। ट्रिब्यूनल का निर्णय तर्कसंगत और सबूत-आधारित था।” — न्यायमूर्ति मेहता।

मामले का महत्व

यह फैसला स्टॉक मार्केट लेनदेन में मौखिक समझौतों की वैधता और पारिवारिक सदस्यों की संयुक्त जिम्मेदारी को मजबूती देता है। साथ ही, यह स्पष्ट करता है कि मध्यस्थता के मामलों में अदालतों की भूमिका सीमित है और ट्रिब्यूनल के तार्किक निर्णयों में हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए।

संदर्भ: सिविल अपील संख्या 2025 (एसएलपी (सी) 18393/2021), एसी चोकशी शेयर ब्रोकर बनाम जतिन प्रताप देसाई एवं अन्य